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चावल के निर्यात

अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

उसना और बासमती चावल पर लागू नहीं होगा यह निर्देश

नई दिल्ली। भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है, अब गैर बासमती चावल के निर्यात (rice export) पर सरकार 20 फीसदी शुल्क वसूलेगी। बताया जा रहा है कि चालू खरीफ फसल सत्र में धान की फसल का रकबा काफी घट गया है। यही कारण है कि घरेलू आपूर्ति बढाने के लिए सरकार ने निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क बढ़ा दिया है, इसमें
उसना चावल (Usna Chawal or Parboiled Rice) को शामिल नहीं किया गया है। बृहस्पतिवार को राजस्व विभाग ने इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी है। केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने बासमती (Basmati) और उसना चावल को छोड़कर सभी प्रकार की किस्मों के चावलों के निर्यात (chawal niryat) पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगना तय है। अभी तक खरीफ सत्र में धान की बुवाई का क्षेत्र 5.62 फीसदी से घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में बारिश कम होने के कारण धान का बुवाई क्षेत्र घट गया है। चीन के बाद भारत चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। वैश्विक स्तर पर भारत में चावल का 40 प्रतिशत हिस्सा है। ये भी पढ़ें - असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

9 सितंबर से लागू होगा सीमा शुल्क

भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लागू किया जा रहा है। बासमती व उसना चावल को इस नियम से बाहर रखा जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत में चावल को रोकने के लिए यह नियम लागू किया गया है।

150 से अधिक देशों को गैर बासमती चावल निर्यात करता है भारत

वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 2.12 करोड़ चावल का निर्यात किया था। जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल शामिल था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान गैर बासमती चावल का निर्यात 6.11 अरब डॉलर का व्यापार रहा था। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में 150 से अधिक देशों में गैर बासमती चावल का निर्यात किया था। ये भी पढ़ें - भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की संभावना

चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लगाने के अलावा इसी महीने होने वाली नवीकरणीय ऊर्जा प्रदर्शनी यानी 'रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो-2022' (Renewable Energy India Expo) में हरित उपकरणों के विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, साथ ही देश मे स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिति, अवसर और चुनौतियों के बारे में श्वेत पत्र जारी किया जा रहा है।

28-30 सितंबर को होगा कार्यक्रम

इन्फोर्मा मार्केट्स इन इंडिया (Informa Markets in India) द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि आगामी 28-30 सितंबर को ऊर्जा के क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े 15वें क्रिस्टल संस्करण रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो 2022 कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम दिल्ली के समीप उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में इंडिया एक्सपो मार्ट (India Expo Centre & Mart ) में होगा। ------ लोकेन्द्र नरवार
खरीददार नहीं दे रहे निर्यात शुल्क, बंदरगाहों पर अटक गया 10 लाख टन चावल

खरीददार नहीं दे रहे निर्यात शुल्क, बंदरगाहों पर अटक गया 10 लाख टन चावल

नई दिल्ली। भारत सरकार ने हाल ही में चावल के निर्यात (rice export) पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाने का फैसला लिया था, लेकिन विदेशी खरीददारों ने अतिरिक्त निर्यात शुल्क देने से मना कर दिया है, जिस कारण भारत का 10 लाख टन चावल बंदरगाहों पर अटका हुआ है। घरेलू बाजार में चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकार ने बीते 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिया था। उधर निर्यातक संगठन का कहना है कि सरकार ने अचानक व तत्काल प्रभाव से अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिया है। लेकिन खरीददार इसके लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि चावल का लदान बंद कर दिया गया है, और 10 लाख टन से ज्यादा चावल बंदरगाहों पर फंस गया है। ये भी पढ़ें – असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड दुनियां के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत द्वारा चावल पर रोक लगाने के बाद अब भारत के पड़ोसी देशों सहित दुनियाभर में चावल के लिए मारामारी होना तय है, इससे कई देशों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

हर महीने 20 लाख टन चावल निर्यात करता है भारत

भारत दुनिया भर में चावल का सबसे ज्यादा निर्यातक देश है, भारत हर महीने 20 लाख टन चावल का निर्यात करता है। आंध्र प्रदेश के कनिकड़ा और विशाखापत्तनम बंदरगाह से सबसे ज्यादा लोडिंग होती है। सरकार द्वारा चावल निर्यात पर पाबंदी के बाद पूरी दुनिया में चावल पर महंगाई बढ़ना तय है। ये भी पढ़ें – भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

टूटे हुए चावल की शिपमेंट भी रुकी

बंदरगाह पर अटके चावल में टूटे हुए चावल की शिपमेंट भी रुक गई है, इस चावल को चीन, सेनेगल, सयुंक्त अरब अमीरात और तुर्की देशों के लिए लदान किया जाना था। लेकिन निर्यात शुल्क में बढ़ोतरी के चलते चावल बंदरगाहों पर ही रोक दिया गया है। लोकेन्द्र नरवार
अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

भारत में खाद्य चीजों की कमी होने का ख़तरा मंडरा रहा है, इसलिए सरकार ने पहले ही गेहूं और टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब केंद्र सरकार एक और कमोडिटी पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, वो है चीनी।

सरकार चीनी के निर्यात (cheeni ke niryat, sugar export) पर जल्द ही फैसला ले सकती है क्योंकि इस साल खराब मौसम और कम बरसात की वजह से प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन कम हुआ है, 

साथ ही कवक रोग के कारण गन्ने की बहुत सारी फसल खराब हो गई है। उत्तर प्रदेश में इस साल सामान्य से 43 फीसदी कम बरसात हुई है।

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इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल सरकार चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति ही प्रदान करेगी, इसके बाद देश में होने वाले उत्पादन और खपत का आंकलन करने के बाद आगे की समीक्षा की जाएगी। 

इसके पहले केंद्र सरकार 24 मई को ही चीनी निर्यात को प्रतिबन्धी श्रेणी में स्थानान्तरित कर चुकी है। सरकार इस साल चीनी उत्पादन को लेकर बेहद चिंतित है। 

सरकार के अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति और मांग में किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए। फिलहाल कुछ राज्यों में इस साल अच्छी बरसात हुई है। 

इन प्रदेशों में गन्ने की खेती के लिए पानी की उपलब्धता लगातार बनी हुई है, जिससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है, इससे अन्य राज्यों में कम उत्पादन की भरपाई होने की संभावना बनी हुई है। 

साल 2021-22 में चीनी का उत्पादन 360 लाख टन के रिकॉर्ड को छू चुका है, साथ ही इस दौरान चीनी का निर्यात 112 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा।

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सूत्र बताते हैं कि चीनी के उत्पादन के मामलों में सरकार जल्द ही निर्णय ले सकती है, जल्द ही सरकार 50 लाख टन की प्रारंभिक मात्रा की अनुमति दे सकती है। 

भारतीय चीनी मिलें जल्द से जल्द चीनी का निर्यात करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मूड में हैं, क्योंकि अभी इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा नहीं है। 

चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राज़ील अप्रैल से लेकर नवम्बर तक इंटरनेशनल मार्केट में चीनी सप्प्लाई करता है। जिससे इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा हो जाती है और चीनी का वो भाव नहीं मिलता जिस भाव का मिलें अपेक्षा करती हैं। 

इसके साथ ही इस मौसम में चीनी मिलें निर्यात करने के लिए इसलिए इच्छुक हैं क्योंकि इस सीजन में चीनी की कीमत ज्यादा मिलती है। इस समय इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की वर्तमान बोली लगभग 538 डॉलर प्रति टन लगाई जा रही है।

यह सौदा चीनी को घरेलू बाजार में बेचने से ज्यादा लाभ देने वाला है क्योंकि चीनी को घरेलू बाजार में बेचने पर मिल मालिकों को 35,500 रुपये प्रति टन की ही कीमत मिल पाती है।

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जबकि महाराष्ट्र में यह कीमत घटकर 34000 रूपये प्रति टन तक आ जाती है, जिसमें मिल मालिकों को उतना फायदा नहीं हो पाता जितना कि इंटरनेशनल मार्केट में निर्यात करने से होता है। 

इसलिए मिल मालिक ज्यादा से ज्यादा चीनी का भारत से निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन सरकार घरेलू जरूरतों को देखते हुए जल्द ही इस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला ले सकती है।

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात (Broken Rice Export) से सम्बंधित केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं। इसकी निर्यात करने की अंतिम समयावधि 31 मार्च निर्धारित की गयी है। इसके चलते धान निर्यात करने वालों को काफी फायदा होगा। इस वर्ष मौसम की बदहाली की वजह से धान का उत्पादन बेहद कम रहा है। कठिनाइयों के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्र सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी और इसकी वजह से पहले से ही निर्धारित चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग गया। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात से सम्बंधित अहम निर्णय लिया गया है। सरकार द्वारा नवीन अधिसूचना के अंतर्गत 9 सितंबर से पूर्व जारी धान अनुबंध को निर्यात हेतु स्वीकृति मिल चुकी है। इसी संबंध में बहुत सारे धान निर्यातकों द्वारा बंदरगाहों में रुके इस चावल को विदेश भेजने के सन्दर्भ में सरकार समक्ष अपनी बात रखी थी, जिसके उपरांत सरकार द्वारा स्वीकृति मिल गयी है। साथ ही, अन्य चावल निर्यात फिलहाल रुका रहेगा। विशेष बात यह है कि केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं।


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केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ?

देश में इस वर्ष बारिश की वजह से फसलों में भारी है। अधिकतर क्षेत्रों में सूखा पड़ने के चलते चावल की रोपाई संपन्न नहीं हो पायी। केंद्र सरकार द्वारा ८ सितम्बर को टूटे चावल पर रोक लगाई गयी थी। फिलहाल विभिन्न देशों को लगभग १० लाख टन चावल निर्यात किया जाना था, जिसे बंदरगाहों पर ही रोक लगने से अटक गया। इसके अतिरिक्त घरेलू आपूर्ति को भी प्रोत्साहित करने के साथ साथ खुदरा दाम को काबू करने हेतु भिन्न - भिन्न श्रेणी के चावलों के निर्यात पर भी २० % तक शुल्क निर्धारित कर दिया था।

भारत करेगा नेपाल को धान का निर्यात

भारत में धान की कम रकबे में रोपाई के बाद भी धान की घरेलू आपूर्ति संतुलित बनी हुई है। इसी के चलते केंद्र सरकार से नेपाल को भी धान निर्यात करने हेतु स्वीकृति मिल गयी है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना में ६ लाख टन पिसाई रहित धान नेपाल भेजने का निर्णय लिया गया है। विशेष बात यह है कि नेपाल अपनी अधिकतर खाद्य जरूरतों के लिए दीर्घकाल से भारत पर आश्रित रहता है।

भारत द्वारा ४० % धान निर्यात किया जायेगा

आपको ज्ञात करादें कि पूरी दुनिया में धान की पूर्ति के लिए भारत से लगभग ४०% धान विभिन्न देशों के लिये भेजा जाता है। भारत के सफेद एवं भूरे चावल की सर्वाधिक मांग होती है। लेकिन कुछ देशों में टूटे हुए चावल की भी बेहद मांग है, इसकी मुख्य वजह यही है कि इससे पूर्व भी पिछले माह सरकार द्वारा ३,९७,२६७ टन टूटे चावल के निर्यात को स्वीकृति दी थी। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०२२ में भारत से लगभग ९३. लाख मीट्रिक टन चावल विदेशों को निर्यात किया गया है। इस चावल में २१.३१ लाख मीट्रिक टन टूटा हुआ चावल भी सम्मिलित है। साथ ही, चावल के कुल निर्यात में २२.७७ फीसद भागीदारी टूटे हुए चावल की होती है, क्योंकि विभिन्न देशों में अच्छे चावल के साथ-साथ टूटे चावल की भी भारी मांग रहती है। टूटे चावल का इस्तेमाल शराब उद्योग, एथेनॉल उद्योग एवं यहां तक कि पॉल्ट्री एवं पशु उद्योग में भी किया जाता है।
भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। दरअसल, भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत से बहुत सारे देशों में चावल की आपूर्ति होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। विशेष रूप से उन देशों में जो चावल के लिए प्रत्यक्ष तौर पर भारत पर आश्रित हैं। सामान्य तौर पर भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। बतादें, कि से अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका समेत एशिया महादेश के भी बहुत सारे देशों में चावल का निर्यात किया जाता है।

केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध

जानकारों ने बताया है, कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर रोकथाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। क्योंकि चावल भारत में अधिकांश लोगों का भोजन है। सबसे विशेष बात यह है, कि भारतीय लोग नॉन बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। यदि नॉन बासमती चावल का निर्यात सुचारू रहता तो, इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती थी। ऐसे में आम जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाता। यही वजह है, कि केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए नॉन बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

नेपाल में इस वजह से बढ़ने वाले चावल के दाम

भारत से सर्वाधिक नॉन बासमती चावल का निर्यात चीन, नेपाल, कैमरून एवं फिलीपींस समेत विभिन्न देशों में होता है। अगर यह प्रतिबंध ज्यादा वक्त तक रहता है, तो इन देशों में चावल की किल्लत हो सकती है। विशेष कर नेपाल सबसे ज्यादा असर होगा। क्योंकि, नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार से इसकी सीमाएं लगती हैं। फासला कम होने के कारण नेपाल को यातायात पर कम लागत लगानी पड़ती है। अगर वह दूसरे देश से चावल खरीदता है, तो निश्चित तौर पर निर्यात पर अत्यधिक खर्चा करना पड़ेगा। इससे नेपाल पहुंचते-पहुंचते चावल की कीमतें बढ़ जाऐंगी, जिससे महंगाई में भी इजाफा हो सकता है।

भारत ने बीते वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था

बतादें, कि ऐसा बताया जा रहा है, कि गैर- बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाए जाने से भारत से निर्यात होने वाले करीब 80 फीसदी चावल पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार के इस कदम से रिटेल बाजार में चावल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही, दूसरे देशों में कीमतें बढ़ जाऐंगी। एक आंकड़े के अनुसार, विश्व की तकरीबन आधी आबादी का भोजन चावल ही है। मतलब कि वे किसी न किसी रूप में चावल खाकर ही अपना पेट भरते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन लोगों के लिए चिंता का विषय है। बतादें, कि विगत वर्ष भारत ने टूटे हुए चावल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।